Monday, March 29, 2010

~मन~

"इंसान और पुर्जों (machine) में बस इतना ही तो फर्क होता है .........
कि इंसान के पास ज़हन होता है....
उड़ भी गए अगर दूजे आसमां पर .....
फिर भी अटका कही किसीमे किसीका मन होता है...."

Sunday, March 21, 2010

~“बुढापा हिंदी का”~

एक दिन रेलवे स्टेशन पर,

एक बच्चे ने देखा एक बन्दर |

बच्चा बोला मम्मी देखो बन्दर

उसपर चीखकर बोली मम्मी,

Monkey कहो नाकि बन्दर |.


अजीब बात है,

शेर भी कहने लगा Hi !

नानी की कहानी में,

मैं समझ गयी,

हिंदी हो चली बूढी अपनी जवानी में |


पीछे से आई विदेशी भाषी बिल्ली,

और उसने नाक हिंदी का नोचा |

इतनी सारी भाषाओँ ने भला,

राष्ट्रभाषा को ही क्यों दबोचा |

किसीने नाक में बोलना शुरू किया,

और टांग हिंदी की तोड़ी|


उधर किसीने 2-3 बोलियों का मिक्सर

with hindi बनाकर इसकी बाह मरोड़ी |

आ गया इन्कलाब भारतीय जुबानी में

हिंदी हो चली बूढी अपनी जवानी में|


एक दिन महाविद्यालय के चौराहे पर

एक नया प्रकार देखने को मिला|

तरीका था दादागिरी भरा

याने की ढीला |

पता चला बादमे

लड़कों ने आविष्कार है किया

यह है स्टाइल बम्बइयाँ |


एक दिन वाचनालय में मैंने पाया

किताबों की ढेर में हिंदी एक और खड़ी है|

मेरे डॉक्टर मित्र ने बताया

हिंदी बीमार पड़ी है |

उसे हो गयी है सर्दी,

क्यूंकि उसे बोलने वालों की कम जो हो गयी गर्दी |

झंडे तक रह गयी सिमित शुद्ध हिंदी राजधानी में,

हिंदी हो चली बूढी अपनी जवानी में |


यदि कबीर समय यन्त्र में बैठकर आज आ जाते

तो वे पशु भी चराते और सूत भी कातते |

पर गाना भूल जाते |

और अगर तुलसीदास आ जाते

तो अपनी ही रचना समझने बैठ जाते |

बिन हिंदी जाने ही ज्ञान आने लगा ज्ञानी में

हिंदी हो चली बूढी अपनी जवानी में |


बुजुर्ग तो चले गए पीछे ये आदेश छोड़

चले दुनिया जिस राह से चल बेटे उसी ओर

सोचती हू क्युना जोश में मैं भी कह दू ??!!

I am a “Hindu”

लग गयी दिमक हाय!

महान हिंदी की महानी में

हिंदी हो चली बूढी अपनी जवानी में.............

8th September, 2002.