Tuesday, May 4, 2010
फेंटसी ड्रीम्स....
Monday, March 29, 2010
~मन~
Sunday, March 21, 2010
~“बुढापा हिंदी का”~
एक बच्चे ने देखा एक बन्दर |
बच्चा बोला “मम्मी देखो बन्दर”
उसपर चीखकर बोली मम्मी,
“Monkey कहो नाकि बन्दर |”.
अजीब बात है,
शेर भी कहने लगा Hi !
नानी की कहानी में,
मैं समझ गयी,
हिंदी हो चली बूढी अपनी जवानी में |
पीछे से आई विदेशी भाषी बिल्ली,
और उसने नाक हिंदी का नोचा |
इतनी सारी भाषाओँ ने भला,
राष्ट्रभाषा को ही क्यों दबोचा |
किसीने नाक में बोलना शुरू किया,
और टांग हिंदी की तोड़ी|
उधर किसीने 2-3 बोलियों का मिक्सर
with hindi बनाकर इसकी बाह मरोड़ी |
आ गया इन्कलाब भारतीय जुबानी में
हिंदी हो चली बूढी अपनी जवानी में|
एक दिन महाविद्यालय के चौराहे पर
एक नया प्रकार देखने को मिला|
तरीका था दादागिरी भरा
याने की “ढीला” |
पता चला बादमे
“लड़कों ने आविष्कार है किया
यह है स्टाइल बम्बइयाँ |”
एक दिन वाचनालय में मैंने पाया
किताबों की ढेर में हिंदी एक और खड़ी है|
मेरे डॉक्टर मित्र ने बताया
“हिंदी बीमार पड़ी है |
उसे हो गयी है सर्दी,
क्यूंकि उसे बोलने वालों की कम जो हो गयी गर्दी |”
झंडे तक रह गयी सिमित शुद्ध हिंदी राजधानी में,
हिंदी हो चली बूढी अपनी जवानी में |
यदि कबीर समय यन्त्र में बैठकर आज आ जाते
तो वे पशु भी चराते और सूत भी कातते |
पर गाना भूल जाते |
और अगर तुलसीदास आ जाते
तो अपनी ही रचना समझने बैठ जाते |
बिन हिंदी जाने ही ज्ञान आने लगा ज्ञानी में
हिंदी हो चली बूढी अपनी जवानी में |
बुजुर्ग तो चले गए पीछे ये आदेश छोड़
“चले दुनिया जिस राह से चल बेटे उसी ओर”
सोचती हू क्युना जोश में मैं भी कह दू ??!!
I am a “Hindu”
लग गयी दिमक हाय!
महान हिंदी की महानी में
हिंदी हो चली बूढी अपनी जवानी में.............
8th September, 2002.